Sunday, October 27, 2024

How Stock Prices are Determined? (In Hindi)

स्टॉक की कीमतें कैसे निर्धारित होती हैं

स्टॉक की कीमतें कई कारकों के आधार पर उतार-चढ़ाव करती हैं जो उनके कथित मूल्य को प्रभावित करते हैं। मूल रूप से, स्टॉक की कीमत बाजार में आपूर्ति और मांग द्वारा निर्धारित होती है। हालाँकि, इन बुनियादी बाजार तंत्रों के अंतर्गत बाजार की भावना, मौलिक विश्लेषण और तकनीकी विश्लेषण जैसे अतिरिक्त प्रभाव होते हैं।

Market Sentiment, Supply, and Demand

बाजार की भावना किसी विशेष स्टॉक या पूरे बाजार के प्रति निवेशकों के समग्र मूड या रवैये को संदर्भित करती है। यदि निवेशक आशावादी हैं और मार्केट और मीडिया की उम्मीदें सकारात्मक हैं, तो स्टॉक की मांग आम तौर पर बढ़ जाती है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। इसके विपरीत, यदि निवेशक निराशावादी हैं, तो मांग घट सकती है, जिससे स्टॉक की कीमतें गिर सकती हैं।

आपूर्ति और मांग: सबसे सरल शब्दों में, किसी स्टॉक की कीमत इस बात से निर्धारित होती है कि निवेशक इसके लिए कितना भुगतान करने को तैयार हैं बनाम यह कितना उपलब्ध है। यदि स्टॉक की मांग उपलब्ध आपूर्ति से अधिक है, तो कीमत बढ़ जाती है। यदि मांग की तुलना में आपूर्ति अधिक है, तो कीमत गिर जाती है।

उदाहरण: यदि कोई कंपनी उत्कृष्ट आय और उच्च भविष्य की विकास क्षमता की घोषणा करती है, तो उसके स्टॉक की मांग बढ़ सकती है, जिससे कीमत बढ़ सकती है। दूसरी ओर, यदि वही कंपनी निराशाजनक आय की रिपोर्ट करती है, तो अधिक निवेशक अपने शेयर बेच सकते हैं, जिससे कीमत में गिरावट आ सकती है।

फंडामेंटल बनाम तकनीकी विश्लेषण (Fundamentals vs. Technical Analysis)

निवेशक अक्सर स्टॉक खरीदने या बेचने के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए फंडामेंटल विश्लेषण और तकनीकी विश्लेषण का उपयोग करते हैं। दोनों दृष्टिकोण इस बात की जानकारी देते हैं कि स्टॉक की कीमत किस वजह से बढ़ती है।

फंडामेंटल विश्लेषण (Fundamentals Analysis)में किसी शेयर का मूल्यांकन उसके वित्तीय स्वास्थ्य और दीर्घकालिक विकास क्षमता के आधार पर करती है। फंडामेंटल विश्लेषक कंपनी के राजस्व, लाभ, ऋण और उद्योग की स्थिति जैसे कारकों का अध्ययन करते हैं। वे ब्याज दरों, मुद्रास्फीति और जीडीपी वृद्धि जैसे व्यापक आर्थिक संकेतकों पर भी विचार करते हैं। विचार यह है कि एक मजबूत, अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनी के शेयर की कीमत अंततः बढ़ेगी क्योंकि निवेशक इसके मूल्य को पहचानते हैं। प्रति शेयर आय (ईपीएस), मूल्य-से-आय अनुपात (पी/ई), लाभांश उपज आदि मौलिक विश्लेषण के मूल घटक है।

तकनीकी विश्लेषण (Technical Analysis)स्टॉक मूल्य आंदोलनों और वॉल्यूम डेटा पर केंद्रित है। तकनीकी विश्लेषक भविष्य के मूल्य रुझानों की भविष्यवाणी करने के लिए चार्ट, पैटर्न और सांख्यिकीय उपकरणों का उपयोग करते हैं। उनका मानना है कि सभी उपलब्ध जानकारी पहले से ही स्टॉक मूल्य चार्ट में price action के रूप में उपलब्ध है, इसलिए पिछले मूल्य और वॉल्यूम पैटर्न का अध्ययन करने से संभावित खरीद या बिक्री के अवसरों का पता चल सकता है।

किसी शेयर की कीमत आपूर्ति और मांग से प्रभावित होती है, जो बाजार की भावना और निवेशकों के विश्लेषण से आकार लेती है। मौलिक विश्लेषण निवेशकों को कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन और उद्योग के दृष्टिकोण के आधार पर उसके आंतरिक मूल्य का आकलन करने में मदद करता है। तकनीकी विश्लेषण पैटर्न की पहचान करने और भविष्य की कीमत में उतार-चढ़ाव का पूर्वानुमान लगाने के लिए ऐतिहासिक मूल्य डेटा का उपयोग करता है। शेयर बाजार में निर्णय लेने के लिए निवेशकों द्वारा दोनों तरीकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

Saturday, October 26, 2024

Types of Financial Securities (In Hindi)

वित्तीय प्रतिभूतियों के प्रकार


वित्तीय बाज़ार में निवेश के कई साधन होते हैं, जैसे इक्विटी (शेयर), बॉन्ड्स, म्यूचुअल फंड्स, एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs), और डेरिवेटिव्स। शेयरों में निवेश से कंपनी के मुनाफे में भागीदारी मिलती है, जबकि बॉन्ड्स में निवेशक को ब्याज मिलता है। म्यूचुअल फंड्स में विशेषज्ञ प्रबंधन करते हैं, और ETFs को शेयरों की तरह खरीदा-बेचा जा सकता है। डेरिवेटिव्स जोखिम प्रबंधन और सट्टेबाजी के लिए उपयोगी होते हैं। प्रत्येक में जोखिम और रिटर्न का स्तर अलग होता है, जिससे निवेशक अपने लक्ष्यों के अनुसार चुन सकते हैं।

प्रतिभूतियाँ व्यापार योग्य वित्तीय साधन हैं। जिनमें शेयर, बॉन्ड, ईटीएफ, म्यूचुअल फंड्स, और डेरिवेटिव्स वगैरह शामिल हैं। जो निवेशकों को पैसा निवेश अवसर प्रदान करते हैं। इनमें से प्रत्येक के साथ अलग-अलग प्रकार का रिस्क और रिटर्न जुदा होता है।

स्टॉक्स (Stocks):

इन्हें सामान्य बोल चाल की भाषा में इक्विटी या शेयर भी कहा जाता है, प्रमुख रूप से ये दो प्रकार के होते हैं। सामान्य/आम शेयर (Common Stocks) और प्राथमिकता शेयर (Preferred Stocks)।

  • सामान्य/आम शेयर (Common Stocks) : आम शेयरधारक कंपनी के सामान्य शेयरधारक होते हैं। इन्हें कंपनी के प्रॉफिट में हिस्सा मिलता है। ये कंपनी के डायरेक्टर्स के चुनाव में वोटिंग का भी अधिकार रखते हैं। लेकिन अगर कंपनी दिवालिया (Bank corrupt) हो जाती है तो इन्हें कर्जदाताओं और प्राथमिकता शेयरधारकों के बाद भुगतान मिलता है।
  • प्राथमिकता शेयर (Preferred Stocks): प्राथमिकता शेयर धारको को सामान्य शेयर धारको की तुलना में सबसे पहले लाभांश मिलता है। इन्हें वोटिंग का अधिकार सामान्‍यता: नहीं होता है। कंपनी बंद हो जाने की स्थिति में इनका भुगतान पहले किया जाता है। Preferred शेयर में आम शेयर की तुलना में जोखिम कम होता है, लेकिन रिटर्न भी अपेक्षाकृत रूप से कम होता है।

बॉन्ड्स (Bonds):

बॉन्ड एक ऋण साधन है, जिसमें निवेशक सरकार या कंपनी को पैसा उधार देता है और इसके बदले में नियमित ब्याज प्राप्त करता है। अवधि पूरी होने पर निवेशक को उसकी मूल राशि मिल जाती है। सरकारी बांड कम जोखिम के साथ सुरक्षित माने जाते हैं, जबकि निगमित (corporate) बांड में अधिक ब्याज के साथ जोखिम भी बढ़ जाता है। बॉन्ड की ब्याज दरें,अवधि और जोखिम अलग-अलग होते हैं, जिससे निवेशको के लिए उनके उद्देश्यों और जोखिम क्षमता के अनुसार चुनाव करना संभव होता है।

म्यूचुअल फंड्स (Mutual Funds):

म्यूच्यूअल फंड्स में निवेशकों से पैसा एकत्रित करके एक प्रोफेशनल फंड मैनेजमेंट कंपनी द्वारा शेयर, बॉन्ड और अन्य प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है। इनके साथ जुड़े जोखिम कारकों के आधार पर इक्विटी आधारित म्यूचुअल फंड, डेट फंड आधारित, एवम हाइब्रिड म्यूचुअल फंड आदि श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।

एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs):

ये म्यूचुअल फंड की तरह हो रहे हैं, लेकिन इन्हें बाज़ार से शेयरों की तरह ही खरीदा या बेचा जा सकता है। ईटीएफ(ETF) किसी विशेष सूचकांक (Index), सेक्टर, कमोडिटी या अन्य परिसंपत्तियों के समग्र प्रदर्शन का अनुसरण करते हैं।

डेरिवेटिव्स (Derivatives):

इनका मुख्य प्रयोग बाजार के जोखिम को कम करने के लिए हेजिंग या सट्टेबाजी करने में किया जाता है। इनका प्राइस किसी अन्य स्टॉक, बॉन्ड, कमोडिटी के आधार पर निर्भर होता है और उसी पर चलता है । डेरिवेटिव के साथ ऊंचा जोखिम और ऊंचा रिटर्न जुड़ा होता है।






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Tuesday, October 22, 2024

What is the Secondary Market? (In Hindi)

द्वितीयक बाजार क्या है? What is the Secondary Market?

द्वितीयक बाजार वह स्थान है जहां निवेशक पहले से जारी प्रतिभूतियों, जैसे स्टॉक और बांड, का आपस में व्यापार करते हैं। यहां कीमतें मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होती हैं, जो निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो का विस्तार और लाभ कमाने का अवसर देती हैं।

द्वितीयक बाजार, जिसे आफ्टरमार्केट (After Market) के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसे बाजार को संदर्भित करता है जहां निवेशक पहले से जारी प्रतिभूतियों, जैसे स्टॉक, बांड, विकल्प और वायदा अनुबंध को खरीद या बेच सकते हैं।

प्राइमरी मार्केट (Primary market) में कंपनी द्वार इश्यू सिक्योरिटीज को नेवेशक सेकेंडरी मार्केट में ट्रेड कर सकते हैं। प्राथमिक बाजार में कंपनी सीधे अपने शेयर निवेशकों को बेचती है, जबकि द्वितीयक बाजार में शेयरधारक आपस में पहले से जारी किए गए शेयरों का व्यापार करते हैं। यहां शेयर की कीमत बाजार की मांग और आपूर्ति (demand and supply) पर निर्भर करती है, जबकी प्राथमिक बाजार में यह कीमत कंपनी तय करती है।

प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट में एक अंतर यह भी है, कि प्राइमरी मार्केट में निवेशक द्वारा दी गई कंपनी की कीमत सीधे कंपनी को मिलती है, जबकी सेकेंडरी मार्केट में निवेशकों के बीच आपस में लेन देन होता है।

द्वितीयक बाजार में निवेशक अपने पोर्टफोलियो में और शेयरों को जोड़कर विस्तार भी कर सकता है, मौजुदा पोर्टफोलियो में समायोजन भी कर सकता है और बाजार जोखिम को कम करने के लिए हेजिंग भी कर सकता है।

द्वितीयक बाजार दो प्रकार के होते हैं।

  • स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange): यह एक संगठित बाजार है जो नियमों और विनियमों को ध्यान में रखकर चलता है। ये नियम निवेशकों और कंपनियों दोनों के हितों को ध्यान में रख कर बनाते हैं। उदाहरण के लिए- भारत में एनएसई (National Stock Exchange - NSE) और बीएसई (Bombay Stock Exchange-BSE) दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं, जो सेबी (Securities and Exchange Board of India-SEBI) की गाइडलाइंस के तहत चलते हैं।
  • ओवर-द-काउंटर (OTC) मार्केट: यहाँ शेयरों और बॉन्ड्स की ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज के बाहर होती है। OTC बाजार कम संगठित होते हैं और आमतौर पर छोटे कंपनियों के शेयर या निजी रूप से जारी किए गए वित्तीय साधनों की ट्रेडिंग यहाँ होती है।

द्वितीयक बाजार शेयर/बॉन्ड की खरीद फरोख्त के लिए तरलता प्रदान करता है। अत: निवेशक और व्यापारी आसानी से शेयर खरीद और बेच सकते हैं। ये शेयर खरीदना और बेचना कीमत निर्धारित करता है। कीमत में उतार चढाव निवेशकों को नए लाभ का अवसर प्रदान करते हैं, वो इन्हें काम भाव में खरीद कर ऊंचे कीमत में बेच सकते हैं।द्वितीयक बाजार में तेजी, अर्थव्यवस्था की मज़बूती दर्शति बनती है।


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Sunday, October 20, 2024

What is the Primary Market? (in Hindi)

प्राथमिक बाजार और कंपनियों की पूंजी जुटाने के तरीके


इस लेख में प्राथमिक बाजार (Primary Market) के विभिन्न तरीकों जैसे IPO, राइट्स इश्यू और निजी प्लेसमेंट के माध्यम से कंपनियों द्वारा पूंजी जुटाने की प्रक्रिया को समझाया गया है।

अपने पिछले लेख (शेयर क्या हैं?) में हमने बात की, कि कैसे कंपनियां, आईपीओ के जरिए अपने बिजनेस के लिए पुंजी जुटती है। आइये इस विषय में आगे बात करते हैं।

आईपीओ के अलावा, कंपनी राइट्स इश्यू (Rights Issue) या प्राइवेट प्लेसमेंट (Private Placement): के माध्यम से भी पैसा जुटा सकती है इसे प्राथमिक बाजार यानी Primary Market भी कहते हैं।

प्राथमिक बाजार क्या है? (What is the Primary Market?)

प्राथमिक बाजार (Primary Market) वह बाजार है जहाँ कंपनियां पहली बार अपने शेयर, बॉन्ड, या अन्य वित्तीय साधन जारी करती हैं और उन्हें सीधे निवेशकों को बेचती हैं। इसे इश्यू मार्केट (Issue Market) भी कहा जाता है।

जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर जारी करती है, तो उसे प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (Initial Public Offer) कहते हैं। IPO के जरिए कंपनी अपने शेयर आम जनता या संस्थागत निवेशकों को बेचती है। इससे कंपनी को पूंजी मिलती है, जिसका उपयोग वह अपनी व्यावसायिक गतिविधियों के लिए करती है। निवेशक जो इन शेयरों को खरीदते हैं, वे कंपनी के मालिक बन जाते हैं और भविष्य में उसके मुनाफे और नुकसान में भागीदार होते हैं।

प्राथमिक बाजार के मुख्य तरीके (Main methods of primary market):

प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (IPO):

शुरुआत में, एक निजी कंपनी अपने शुरुआती निवेशकों, संस्थापकों और शेयरधारकों के साथ मिलकर आगे बढ़ती है। जब कंपनी एक विशेष लक्ष्य हासिल कर लेती है और प्रबंधन को लगता है कि वे SEC (Securities and Exchange Commission) के नियमों का पालन करने, बढ़ने और जनता के पैसे का उपयोग करके विविधता लाने के लिए पर्याप्त स्थिर हैं, तब कंपनी Initial Public Offering (IPO) की पेशकश करने का निर्णय लेती है। इसके माध्यम से, कंपनी में हिस्सेदारी को शेयरों के माध्यम से आम जनता को पेश किया जाता है। IPO के बाद, ये शेयर द्वितीयक बाजार (secondary market) में व्यापार के लिए उपलब्ध हो जाते हैं।

आईपीओ भी दो प्रकार के होते हैं,

  • निश्चित मूल्य आईपीओ (Fixed Price Offering) जहां कंपनी खुद तय करती है कि उनके शेयर का क्या मूल्य होना चाहिए और खरीदारों को शेयर खरीदने के लिए, वही राशि का भुगतान करना होता है।
  • बुक बिल्डिंग आईपीओ (Book Building IPO), कंपनी अपने स्टॉक का न्यूनतम और अधिकतम मूल्य सीमा निर्धारित करती है। और खरीदार उसी सीमा में बोली लगाते हैं। शेयर की कीमत अंडरराइटर और कंपनी के निवेशकों द्वारा सर्वेक्षण के साथ निर्धारित की जाती है कि शेयर का मूल्य क्या होगा। उसके बाद निर्धारित मूल्य पर चयनित निवेशकों को स्टॉक मिलते हैं।

राइट्स इश्यू (Rights Issue):

राइट इश्यू के जरिए, स्टॉक मार्केट में पहले से ही कंपनियों की सूची, अपने मौजूदा शेयरधारकों को अतिरिक्त शेयर खरीदने का मौका देती है। हालांकि ये शेयर होल्डर पे निर्भर करता है कि वो अतिरिक्त शेयर खरीदना चाहता है या नहीं।

राइट्स इश्यू से कंपनी का इक्विटी बेस बढ़ जाता है, और स्टॉक एक्सचेंज में कंपनी के शेयरों की लिक्विडिटी भी बढ़ जाती है। हालांकि, शेयरों की संख्या बढ़ने के बावजूद, कंपनी के मालिकाना हक पर कोई असर नहीं पड़ता है। कंपनी का मालिकाना हक उन्हीं लोगों के पास रहता है, जिनके पास राइट्स इश्यू जारी करने से पहले था।

कंपनियां ये अतिरिक्त शेयर एक निश्चित अनुपात में ही देती हैं। मान लीजिए, कंपनी ने राइट्स इश्यू के लिए 1:4 का अनुपात तय किया है। इसका मतलब यह है कि एक शेयरधारक, अपने पास पहले से मौजूद 4 शेयरों पर एक अतिरिक्त शेयर खरीद सकता है।

राइट्स इश्यू के जरिए कंपनियां अपने शेयरधारकों को डिस्काउंट भी देती हैं, जिससे उन्हें बाजार कीमत से कम पर शेयर खरीदने का मौका मिलता है। यह शेयरधारकों के लिए एक आकर्षक अवसर होता है, क्योंकि वे कम कीमत पर अतिरिक्त शेयर खरीद सकते हैं। यदि किसी कंपनी के शेयर की बाजार कीमत 100 रुपये है और कंपनी राइट्स इश्यू के तहत 10% डिस्काउंट की घोषणा करती है, तो शेयरधारक 90 रुपये प्रति शेयर की दर से अतिरिक्त शेयर खरीद सकता है।

निजी प्लेसमेंट (Private Placement):

किसी भी कंपनी द्वारा अपने स्टॉक, बॉन्ड, या अन्य प्रतिभूतियों को चुनिंदा निवेशकों को बेचना ही निजी प्लेसमेंट कहा जाता है। यह किसी नए स्टार्टअप के लिए आईपीओ का दूसरा विकल्प है। प्राइवेट प्लेसमेंट में आईपीओ की तुलना में नियम और कानून बहुत कम होते हैं। और कंपनियां स्टॉक मार्केट में लिस्टिंग के बिना भी अपने शेयर चुनिंदा निवेशकों को बेच सकती हैं। इसका मतलब है कि इसमें अंडरराइटिंग की प्रक्रिया तेज होती है और कंपनी को जल्द ही फंडिंग मिल जाती है। लेकिन निवेशकों को इसमें बाजार में सूचीबद्ध बांड/प्रतिभूतियों की तुलना में अधिक रिटर्न की उम्मीद होती है, और वे अधिक प्रतिशत शेयरों की भी मांग कर सकते हैं।

प्राथमिक बाजार कंपनियों को सीधे निवेशकों से पूंजी जुटाने का मौका देता है, जिससे वे अपने व्यापार को बढ़ा सकते हैं, नई परियोजनाओं में निवेश कर सकते हैं, या कर्ज चुकाने में मदद पा सकते हैं। यह बाजार निवेशकों को नए शेयर खरीदने का अवसर भी प्रदान करता है, जिससे वे कंपनी के विकास और मुनाफे का लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा, जब कंपनियां पूंजी जुटाती हैं और विस्तार करती हैं, तो इससे आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी होती है, रोजगार के नए अवसर बनते हैं और अर्थव्यवस्था को फायदा होता है।

प्राथमिक बाजार वह स्थान है जहाँ कंपनियां पहली बार अपने वित्तीय साधन, जैसे शेयर या बॉन्ड, जारी करती हैं और उन्हें निवेशकों को बेचती हैं। यह कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने का एक प्रमुख स्रोत है और निवेशकों को नए निवेश के अवसर प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनियों को पूंजी जुटाने में मदद करना और उनके विस्तार के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना है।





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Saturday, October 19, 2024

What is a Share? (In Hindi)

शेयर क्या है? (What is a Share?)


शेयर बाजार में निवेश करते समय सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि शेयर क्या होते हैं और कैसे वे किसी कंपनी में आपकी हिस्सेदारी का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब कोई व्यक्ति या निवेशक किसी कंपनी के शेयर खरीदता है, तो वह उस कंपनी का आंशिक मालिक बन जाता है। इसके जरिए वह कंपनी के मुनाफे और संपत्ति में हिस्सा पाता है। हम आपको बताएंगे कि शेयर कैसे काम करते हैं, कंपनी के स्वामित्व में उनका क्या महत्व है?

शेयर यानि किसी कंपनी में हिस्सेदारी । जब कोई व्यक्ति या निवेशक किसी कंपनी के शेयर खरीदता है, तो वह उस कंपनी का आंशिक मालिक बन जाता है। इसका मतलब यह है कि उसे कंपनी के मुनाफे में हिस्सा मिलता है और वह कंपनी की संपत्ति का भी आंशिक हकदार होता है। कंपनी शेयरों के माध्यम से पूंजी जुटाती है, जिसका उपयोग वह अपने व्यापार के विस्तार, नए प्रोजेक्ट्स, या संचालन में करती है।

एक कंपनी के हर शेयर की वैल्यू एक जैसी होती है। अब ये कंपनी पर निर्भर करता है कि वो अपनी कंपनी के कितने शेयर बनाये। उदाहरण के लिए, अगर कंपनी का वैल्यूएशन 1 लाख रुपये है तो वह 1-1 रुपये का 1 लाख शेयर भी बन सकती है या 25-25 पैसे का 4 लाख शेयर भी।

जब भी कंपनी शेयर इश्यू करती है तो 100% शेयर बाजार में नहीं बेचती है। कंपनी अपना स्वामित्व बनाए रखने के लिए कम से कम 50% शेयर अपना पास रखती है। जिसके पास सबसे ज्यादा शेयर होते हैं वही सबसे शक्तिशाली डिसिजन मेकर हो सकता है। अगर सारे ही शेयर बेच दिए जाएंगे, तो स्वामित्व संस्थापकों से शिफ्ट होकर शेयरधारक के पास जा सकता है। यही कारण है कि कंपनी के मालिक शेयर मार्केट में अलॉट नहीं करते हैं।

जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर जारी करती है, तो उसे प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (IPO) कहते हैं। IPO के जरिए कंपनी अपने शेयर आम जनता या संस्थागत निवेशकों को बेचकर पुंजी जुटाती है।





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What is Stock Market?