Saturday, November 2, 2024

बाजार की मनोविज्ञान (Market Psychology)

बाजार का मनोविज्ञान


maket Psychology

बाजार मनोविज्ञान किसी भी समय निवेशकों और व्यापारियों की सामूहिक भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थिति को संदर्भित करता है, जो शेयर बाजार के व्यवहार को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।

बाजार में उतार-चढ़ाव का प्रमुख कारण निवेशकों की भावनाएँ होती हैं, जैसे कि डर, लालच, उम्मीद, और निराशा। इन भावनाओं का असर शेयरों के मूल्य पर पड़ता है और यही बाजार की दिशा को निर्धारित करता है।

मार्केट साइकोलॉजी को एक शक्तिशाली कारक माना जाता है। जो किसी विशेष बुनियादी बातों या घटनाओं से न्यायसंगत किया जा सकता है और नहीं भी।

उदाहरण के लिए, यदि निवेशक अचानक अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य में विश्वास खो देते हैं और स्टॉक खरीदने से पीछे हटने का फैसला करते हैं, तो समग्र बाजार की कीमतों को ट्रैक करने वाले सूचकांक गिर जाएंगे और इसलिए व्यक्तिगत स्टॉक उनके साथ गिर जाएंगे, भले ही उन शेयरों के पीछे कंपनियों का वित्तीय प्रदर्शन कुछ भी हो।

बाजार मनोविज्ञान के प्रमुख घटक (Key Components of Market Psychology)

लालच (Greed): जब किसी स्टॉक की कीमत अचानक तेजी से बढ़ने लगती है, तो बहुत सारे निवेशक उत्साह में आकर, यह सोच कर इसकी और आकर्शित हो जाते हैं कि कीमत अभी और बढ़ेगी। फिर जब स्टॉक ऊपर की तरफ जाता है तो, ये थ्रिल में आकर ज्यादा खरीदारी कर लेते हैं और लालच में आकर ऊपर के लेवल पर फस जाते हैं।

डर (Fear): जब किसी शेयर के गिरने की संभावना होती है, तो निवेशक इसे जल्दी बेचने की कोशिश करते हैं ताकि नुकसान से बच सकें। इस डर के कारण कई बार बाजार में एक बड़ी गिरावट आती है।

ऊपरी स्तर पर खरीदारी करने के बाद अगर बाजार गिरता है तो ये चिंता में आ जाता है। लेकिन इस समय पर बाजार में खुदरा निवेशक सुधार को स्वीकार नहीं कर पाते। और जब बाजार और नीचे जाता है तो इनकी चिंता डर में बदल जाती है।

और एक समय ऐसा आता है जब इनको लगता है कि मार्केट मेरे लिए नहीं है। मुझे सब कुछ बेचकर बाजार से बाहर निकलना होगा। लेकिन यहीं जगह है, जहां निवेश करने का सबसे अच्छा अवसर होता है।

आशा (Hope) जब किसी कंपनी के भविष्य को लेकर सकारात्मक खबरें होती हैं, जैसे नए उत्पाद का लॉन्च या बढ़ती कमाई की संभावना, तो निवेशक इस उम्मीद में शेयर खरीदते हैं कि उनकी कीमत और बढ़ेगी।

जब बाजार में सबसे ज्यादा निराशा हो, अगर निवेशक वहां स्टॉक में निवेश कर पाता है, तो उसको बाजार के ऊपर जाने के लिए काफी इंतजार करना पड़ता है। क्यूँ इस समय बाज़ार नीचे के स्तर पर मजबूत (Consolidate) हो रहा होता है

निराशा (Despair): जब किसी कंपनी का प्रदर्शन खराब होता है या अर्थव्यवस्था में मंदी का माहौल बनता है, तो निवेशक निराश हो जाते हैं।

इसके अलावा जब बाजार काफी इंतजार के बाद भी ऊपर नहीं जाता तब भी निवेशक के मन में निराशा का जन्म होने लगता है। और इस निराशा के चलते वो अपनी होल्डिंग्स बेचने लगते हैं।

भीड़ का प्रभाव (Herd Mentality): निवेशक काफी बार यह देखकर खरीदारी करते हैं कि बाकी लोग क्या कर रहे हैं। और धीरे-धीरे सभी एक ही दिशा में चलने लगते हैं। ये मानसिक स्थिति एक बुलबुले को जन्म देती है।

जैसे कि डॉट-कॉम बबल में हुआ था, जब सभी टेक्नोलॉजी स्टॉक्स में निवेश कर रहे थे और अंत में बड़े पैमाने पर नुकसान का सामना करना पड़ा था।

फंडामेंटल और टेक्निकल डोनो ही तरह के विशलेषण मार्केट की सायोकोलॉजी समझने में मदद करते हैं। एक जागरूक निवेशक इनका उपयोग करके सटीक निर्णय ले सकता है।

मार्केट बार-बार सायोकोलॉजी चक्र के माध्यम से गुजराता है।

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Friday, November 1, 2024

Assumptions of Technical Analysis (In Hindi)

तकनीकी विश्लेषण की बुनियादी मान्यताएँ




एक तकनीकी विश्लेषक स्टॉक की कीमत, पैटर्न और ट्रेंड को देखकर बाजार की भावनाओं को समझने का प्रयास करता है।

चार्ल्स डॉव ने 2 बुनियादी धारणाएं दी थीं, जो तकनीकी विश्लेषण ट्रेडिंग के लिए रूपरेखा तैयार करती हैं। आज भी तकनीकी विश्लेषण उनके सिद्धांत पर आधारित है। पेशेवर विश्लेषक आम तौर पर तीन सामान्य धारणाओं को स्वीकार करते हैं:

1. मूल्य में सब कुछ शामिल होता है (Price Discounts Everything)

तकनीकी विश्लेषकों का मानना है कि कंपनी के मूल सिद्धांतों, आर्थिक समाचार, निवेशक भावना (बाजार मनोविज्ञान), व्यापक बाजार कारकों तक हर चीज की कीमत पहले से ही एक स्टॉक के प्राइस में सम्मिलित होती है। इसलिए, तकनीकी विश्लेषक केवल मूल्य और supply demand डेटा का विश्लेषण करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। और इसको कीमत, आपूर्ति और मांग के रूप में चार्ट पर देखते हैं।

2. कीमतें रुझान के अनुसार बदलती रहती हैं(Prices Move in Trends)

तकनीकी विश्लेषकों के अनुसार, कोई भी बाजार मूल्य हमेशा एक प्रवृत्ति (ट्रेंड/Trend) में होता है और कोई भी समय सीमा पर निर्भर नहीं करता। सरल भाषा में किसी भी स्टॉक की कीमत अनियमित रूप से बढ़ने की तुलना में अपने पुराने ट्रेंड में आगे बढ़ने की संभावना अधिक रहती है

3. इतिहास अपने आप को दोहराता है (History Repeats Itself)

तकनीकी विश्लेषकों के अनुसार, इतिहास खुद को दोहरा सकता है। तकनीकी विश्लेषकों का मानना है कि मूल्य पैटर्न और रुझान समय के साथ खुद को दोहराते हैं। इन पैटर्न की पहचान करके, विश्लेषक भविष्य की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का अनुमान लगा सकते हैं और सूचित ट्रेडिंग निर्णय ले सकते हैं। माना जाता है कि इन पैटर्न में पूर्वानुमान लगाने की शक्ति होती है और इनका उपयोग बाजार में संभावित मोड़ की पहचान करने के लिए किया जा सकता है।

ऊपर कहीं बातों से ये निष्कर्ष निकलता है कि:

  • मूल्य में उतार-चढ़ाव अक्सर विशिष्ट पैटर्न का अनुसरण करते हैं, जैसे सिर और कंधे (Head and Shoulder Pattern), त्रिकोण (Triangle Pattern) और झंडा पैटर्न (Flag Pattern)
  • बाजार प्रतिभागियों की भावनाओं और मनोविज्ञान से संचालित होता है।
  • बाजार कुशल है और सभी जानकारी आसानी से उपलब्ध है।
  • निवेशक तर्कसंगत हैं और अपने सर्वोत्तम हित में कार्य करते हैं।
  • सभी ऑर्डर मौजूदा बाजार मूल्य पर भरे जाते हैं।
  • कोई लेनदेन लागत या शुल्क नहीं है।





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Sunday, October 27, 2024

How Stock Prices are Determined? (In Hindi)

स्टॉक की कीमतें कैसे निर्धारित होती हैं

स्टॉक की कीमतें कई कारकों के आधार पर उतार-चढ़ाव करती हैं जो उनके कथित मूल्य को प्रभावित करते हैं। मूल रूप से, स्टॉक की कीमत बाजार में आपूर्ति और मांग द्वारा निर्धारित होती है। हालाँकि, इन बुनियादी बाजार तंत्रों के अंतर्गत बाजार की भावना, मौलिक विश्लेषण और तकनीकी विश्लेषण जैसे अतिरिक्त प्रभाव होते हैं।

Market Sentiment, Supply, and Demand

बाजार की भावना किसी विशेष स्टॉक या पूरे बाजार के प्रति निवेशकों के समग्र मूड या रवैये को संदर्भित करती है। यदि निवेशक आशावादी हैं और मार्केट और मीडिया की उम्मीदें सकारात्मक हैं, तो स्टॉक की मांग आम तौर पर बढ़ जाती है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। इसके विपरीत, यदि निवेशक निराशावादी हैं, तो मांग घट सकती है, जिससे स्टॉक की कीमतें गिर सकती हैं।

आपूर्ति और मांग: सबसे सरल शब्दों में, किसी स्टॉक की कीमत इस बात से निर्धारित होती है कि निवेशक इसके लिए कितना भुगतान करने को तैयार हैं बनाम यह कितना उपलब्ध है। यदि स्टॉक की मांग उपलब्ध आपूर्ति से अधिक है, तो कीमत बढ़ जाती है। यदि मांग की तुलना में आपूर्ति अधिक है, तो कीमत गिर जाती है।

उदाहरण: यदि कोई कंपनी उत्कृष्ट आय और उच्च भविष्य की विकास क्षमता की घोषणा करती है, तो उसके स्टॉक की मांग बढ़ सकती है, जिससे कीमत बढ़ सकती है। दूसरी ओर, यदि वही कंपनी निराशाजनक आय की रिपोर्ट करती है, तो अधिक निवेशक अपने शेयर बेच सकते हैं, जिससे कीमत में गिरावट आ सकती है।

फंडामेंटल बनाम तकनीकी विश्लेषण (Fundamentals vs. Technical Analysis)

निवेशक अक्सर स्टॉक खरीदने या बेचने के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए फंडामेंटल विश्लेषण और तकनीकी विश्लेषण का उपयोग करते हैं। दोनों दृष्टिकोण इस बात की जानकारी देते हैं कि स्टॉक की कीमत किस वजह से बढ़ती है।

फंडामेंटल विश्लेषण (Fundamentals Analysis)में किसी शेयर का मूल्यांकन उसके वित्तीय स्वास्थ्य और दीर्घकालिक विकास क्षमता के आधार पर करती है। फंडामेंटल विश्लेषक कंपनी के राजस्व, लाभ, ऋण और उद्योग की स्थिति जैसे कारकों का अध्ययन करते हैं। वे ब्याज दरों, मुद्रास्फीति और जीडीपी वृद्धि जैसे व्यापक आर्थिक संकेतकों पर भी विचार करते हैं। विचार यह है कि एक मजबूत, अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनी के शेयर की कीमत अंततः बढ़ेगी क्योंकि निवेशक इसके मूल्य को पहचानते हैं। प्रति शेयर आय (ईपीएस), मूल्य-से-आय अनुपात (पी/ई), लाभांश उपज आदि मौलिक विश्लेषण के मूल घटक है।

तकनीकी विश्लेषण (Technical Analysis)स्टॉक मूल्य आंदोलनों और वॉल्यूम डेटा पर केंद्रित है। तकनीकी विश्लेषक भविष्य के मूल्य रुझानों की भविष्यवाणी करने के लिए चार्ट, पैटर्न और सांख्यिकीय उपकरणों का उपयोग करते हैं। उनका मानना है कि सभी उपलब्ध जानकारी पहले से ही स्टॉक मूल्य चार्ट में price action के रूप में उपलब्ध है, इसलिए पिछले मूल्य और वॉल्यूम पैटर्न का अध्ययन करने से संभावित खरीद या बिक्री के अवसरों का पता चल सकता है।

किसी शेयर की कीमत आपूर्ति और मांग से प्रभावित होती है, जो बाजार की भावना और निवेशकों के विश्लेषण से आकार लेती है। मौलिक विश्लेषण निवेशकों को कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन और उद्योग के दृष्टिकोण के आधार पर उसके आंतरिक मूल्य का आकलन करने में मदद करता है। तकनीकी विश्लेषण पैटर्न की पहचान करने और भविष्य की कीमत में उतार-चढ़ाव का पूर्वानुमान लगाने के लिए ऐतिहासिक मूल्य डेटा का उपयोग करता है। शेयर बाजार में निर्णय लेने के लिए निवेशकों द्वारा दोनों तरीकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

Saturday, October 26, 2024

Types of Financial Securities (In Hindi)

वित्तीय प्रतिभूतियों के प्रकार


वित्तीय बाज़ार में निवेश के कई साधन होते हैं, जैसे इक्विटी (शेयर), बॉन्ड्स, म्यूचुअल फंड्स, एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs), और डेरिवेटिव्स। शेयरों में निवेश से कंपनी के मुनाफे में भागीदारी मिलती है, जबकि बॉन्ड्स में निवेशक को ब्याज मिलता है। म्यूचुअल फंड्स में विशेषज्ञ प्रबंधन करते हैं, और ETFs को शेयरों की तरह खरीदा-बेचा जा सकता है। डेरिवेटिव्स जोखिम प्रबंधन और सट्टेबाजी के लिए उपयोगी होते हैं। प्रत्येक में जोखिम और रिटर्न का स्तर अलग होता है, जिससे निवेशक अपने लक्ष्यों के अनुसार चुन सकते हैं।

प्रतिभूतियाँ व्यापार योग्य वित्तीय साधन हैं। जिनमें शेयर, बॉन्ड, ईटीएफ, म्यूचुअल फंड्स, और डेरिवेटिव्स वगैरह शामिल हैं। जो निवेशकों को पैसा निवेश अवसर प्रदान करते हैं। इनमें से प्रत्येक के साथ अलग-अलग प्रकार का रिस्क और रिटर्न जुदा होता है।

स्टॉक्स (Stocks):

इन्हें सामान्य बोल चाल की भाषा में इक्विटी या शेयर भी कहा जाता है, प्रमुख रूप से ये दो प्रकार के होते हैं। सामान्य/आम शेयर (Common Stocks) और प्राथमिकता शेयर (Preferred Stocks)।

  • सामान्य/आम शेयर (Common Stocks) : आम शेयरधारक कंपनी के सामान्य शेयरधारक होते हैं। इन्हें कंपनी के प्रॉफिट में हिस्सा मिलता है। ये कंपनी के डायरेक्टर्स के चुनाव में वोटिंग का भी अधिकार रखते हैं। लेकिन अगर कंपनी दिवालिया (Bank corrupt) हो जाती है तो इन्हें कर्जदाताओं और प्राथमिकता शेयरधारकों के बाद भुगतान मिलता है।
  • प्राथमिकता शेयर (Preferred Stocks): प्राथमिकता शेयर धारको को सामान्य शेयर धारको की तुलना में सबसे पहले लाभांश मिलता है। इन्हें वोटिंग का अधिकार सामान्‍यता: नहीं होता है। कंपनी बंद हो जाने की स्थिति में इनका भुगतान पहले किया जाता है। Preferred शेयर में आम शेयर की तुलना में जोखिम कम होता है, लेकिन रिटर्न भी अपेक्षाकृत रूप से कम होता है।

बॉन्ड्स (Bonds):

बॉन्ड एक ऋण साधन है, जिसमें निवेशक सरकार या कंपनी को पैसा उधार देता है और इसके बदले में नियमित ब्याज प्राप्त करता है। अवधि पूरी होने पर निवेशक को उसकी मूल राशि मिल जाती है। सरकारी बांड कम जोखिम के साथ सुरक्षित माने जाते हैं, जबकि निगमित (corporate) बांड में अधिक ब्याज के साथ जोखिम भी बढ़ जाता है। बॉन्ड की ब्याज दरें,अवधि और जोखिम अलग-अलग होते हैं, जिससे निवेशको के लिए उनके उद्देश्यों और जोखिम क्षमता के अनुसार चुनाव करना संभव होता है।

म्यूचुअल फंड्स (Mutual Funds):

म्यूच्यूअल फंड्स में निवेशकों से पैसा एकत्रित करके एक प्रोफेशनल फंड मैनेजमेंट कंपनी द्वारा शेयर, बॉन्ड और अन्य प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है। इनके साथ जुड़े जोखिम कारकों के आधार पर इक्विटी आधारित म्यूचुअल फंड, डेट फंड आधारित, एवम हाइब्रिड म्यूचुअल फंड आदि श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।

एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs):

ये म्यूचुअल फंड की तरह हो रहे हैं, लेकिन इन्हें बाज़ार से शेयरों की तरह ही खरीदा या बेचा जा सकता है। ईटीएफ(ETF) किसी विशेष सूचकांक (Index), सेक्टर, कमोडिटी या अन्य परिसंपत्तियों के समग्र प्रदर्शन का अनुसरण करते हैं।

डेरिवेटिव्स (Derivatives):

इनका मुख्य प्रयोग बाजार के जोखिम को कम करने के लिए हेजिंग या सट्टेबाजी करने में किया जाता है। इनका प्राइस किसी अन्य स्टॉक, बॉन्ड, कमोडिटी के आधार पर निर्भर होता है और उसी पर चलता है । डेरिवेटिव के साथ ऊंचा जोखिम और ऊंचा रिटर्न जुड़ा होता है।






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Tuesday, October 22, 2024

What is the Secondary Market? (In Hindi)

द्वितीयक बाजार क्या है? What is the Secondary Market?

द्वितीयक बाजार वह स्थान है जहां निवेशक पहले से जारी प्रतिभूतियों, जैसे स्टॉक और बांड, का आपस में व्यापार करते हैं। यहां कीमतें मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होती हैं, जो निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो का विस्तार और लाभ कमाने का अवसर देती हैं।

द्वितीयक बाजार, जिसे आफ्टरमार्केट (After Market) के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसे बाजार को संदर्भित करता है जहां निवेशक पहले से जारी प्रतिभूतियों, जैसे स्टॉक, बांड, विकल्प और वायदा अनुबंध को खरीद या बेच सकते हैं।

प्राइमरी मार्केट (Primary market) में कंपनी द्वार इश्यू सिक्योरिटीज को नेवेशक सेकेंडरी मार्केट में ट्रेड कर सकते हैं। प्राथमिक बाजार में कंपनी सीधे अपने शेयर निवेशकों को बेचती है, जबकि द्वितीयक बाजार में शेयरधारक आपस में पहले से जारी किए गए शेयरों का व्यापार करते हैं। यहां शेयर की कीमत बाजार की मांग और आपूर्ति (demand and supply) पर निर्भर करती है, जबकी प्राथमिक बाजार में यह कीमत कंपनी तय करती है।

प्राइमरी और सेकेंडरी मार्केट में एक अंतर यह भी है, कि प्राइमरी मार्केट में निवेशक द्वारा दी गई कंपनी की कीमत सीधे कंपनी को मिलती है, जबकी सेकेंडरी मार्केट में निवेशकों के बीच आपस में लेन देन होता है।

द्वितीयक बाजार में निवेशक अपने पोर्टफोलियो में और शेयरों को जोड़कर विस्तार भी कर सकता है, मौजुदा पोर्टफोलियो में समायोजन भी कर सकता है और बाजार जोखिम को कम करने के लिए हेजिंग भी कर सकता है।

द्वितीयक बाजार दो प्रकार के होते हैं।

  • स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange): यह एक संगठित बाजार है जो नियमों और विनियमों को ध्यान में रखकर चलता है। ये नियम निवेशकों और कंपनियों दोनों के हितों को ध्यान में रख कर बनाते हैं। उदाहरण के लिए- भारत में एनएसई (National Stock Exchange - NSE) और बीएसई (Bombay Stock Exchange-BSE) दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं, जो सेबी (Securities and Exchange Board of India-SEBI) की गाइडलाइंस के तहत चलते हैं।
  • ओवर-द-काउंटर (OTC) मार्केट: यहाँ शेयरों और बॉन्ड्स की ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज के बाहर होती है। OTC बाजार कम संगठित होते हैं और आमतौर पर छोटे कंपनियों के शेयर या निजी रूप से जारी किए गए वित्तीय साधनों की ट्रेडिंग यहाँ होती है।

द्वितीयक बाजार शेयर/बॉन्ड की खरीद फरोख्त के लिए तरलता प्रदान करता है। अत: निवेशक और व्यापारी आसानी से शेयर खरीद और बेच सकते हैं। ये शेयर खरीदना और बेचना कीमत निर्धारित करता है। कीमत में उतार चढाव निवेशकों को नए लाभ का अवसर प्रदान करते हैं, वो इन्हें काम भाव में खरीद कर ऊंचे कीमत में बेच सकते हैं।द्वितीयक बाजार में तेजी, अर्थव्यवस्था की मज़बूती दर्शति बनती है।


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